अजब चराग़ हूँ दिन रात जलता रहता हूँ
मैं थक गया हूँ हवा से कहो बुझाए मुझे
- बशीर बद्र
दिल में किसी के राह किए जा रहा हूँ मैं
कितना हसीं गुनाह किए जा रहा हूँ मैं
- जिगर मुरादाबादी
- बशीर बद्र
दिल में किसी के राह किए जा रहा हूँ मैं
कितना हसीं गुनाह किए जा रहा हूँ मैं
- जिगर मुरादाबादी
आसमाँ इतनी बुलंदी पे जो इतराता है
भूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है
- वसीम बरेलवी
बक रहा हूँ जुनूँ में क्या क्या कुछ
कुछ न समझे ख़ुदा करे कोई
- मिर्ज़ा ग़ालिब
भूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है
- वसीम बरेलवी
बक रहा हूँ जुनूँ में क्या क्या कुछ
कुछ न समझे ख़ुदा करे कोई
- मिर्ज़ा ग़ालिब
हम भी क्या ज़िंदगी गुज़ार गए
दिल की बाज़ी लगा के हार गए
- दाग़ देहलवी
इस रास्ते के नाम लिखो एक शाम और
या इस में रौशनी का करो इंतिज़ाम और
- दुष्यंत कुमार
दिल की बाज़ी लगा के हार गए
- दाग़ देहलवी
इस रास्ते के नाम लिखो एक शाम और
या इस में रौशनी का करो इंतिज़ाम और
- दुष्यंत कुमार
मेरे रोने की हक़ीक़त जिसमें थी
एक मुद्दत तक वो काग़ज़ नम रहा
- मीर
वो दिल ही क्या तेरे मिलने की जो दुआ न करे
मैं तुझे भूल के ज़िंदा रहूं ख़ुदा न करे
- क़तील शिफ़ाई
एक मुद्दत तक वो काग़ज़ नम रहा
- मीर
वो दिल ही क्या तेरे मिलने की जो दुआ न करे
मैं तुझे भूल के ज़िंदा रहूं ख़ुदा न करे
- क़तील शिफ़ाई
हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते
- गुलज़ार
कुछ फैसला तो हो कि किधर जाना चाहिए
पानी को अब तो सर से गुज़र जाना चाहिए
- परवीन शाकिर
वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते
- गुलज़ार
कुछ फैसला तो हो कि किधर जाना चाहिए
पानी को अब तो सर से गुज़र जाना चाहिए
- परवीन शाकिर
आज देखा है तुझ को देर के बाद
आज का दिन गुज़र न जाए कहीं
- नासिर काज़मी
आँखें जो उठाए तो मोहब्बत का गुमाँ हो
नज़रों को झुकाए तो शिकायत सी लगे है
- जाँ निसार अख़्तर
आज का दिन गुज़र न जाए कहीं
- नासिर काज़मी
आँखें जो उठाए तो मोहब्बत का गुमाँ हो
नज़रों को झुकाए तो शिकायत सी लगे है
- जाँ निसार अख़्तर
आप की याद आती रही रात भर
चश्म-ए-नम मुस्कुराती रही रात भर
- मख़दूम मुहिउद्दीन
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
चश्म-ए-नम मुस्कुराती रही रात भर
- मख़दूम मुहिउद्दीन
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
दर्द ऐसा है कि जी चाहे है ज़िंदा रहिए
ज़िंदगी ऐसी कि मर जाने को जी चाहे है
- कलीम आजिज़
देखा है ज़िंदगी को कुछ इतने क़रीब से
चेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से
- साहिर लुधियानवी
ज़िंदगी ऐसी कि मर जाने को जी चाहे है
- कलीम आजिज़
देखा है ज़िंदगी को कुछ इतने क़रीब से
चेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से
- साहिर लुधियानवी
चाहिए ख़ुद पे यक़ीन-ए-कामिल
हौसला किस का बढ़ाता है कोई
- शकील बदायुनी
धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो
ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो
- निदा फ़ाज़ली
हौसला किस का बढ़ाता है कोई
- शकील बदायुनी
धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो
ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो
- निदा फ़ाज़ली
अब जुदाई के सफ़र को मिरे आसान करो
तुम मुझे ख़्वाब में आ कर न परेशान करो
- मुनव्वर राना
और तो क्या था बेचने के लिए
अपनी आँखों के ख़्वाब बेचे हैं
- जौन एलिया
तुम मुझे ख़्वाब में आ कर न परेशान करो
- मुनव्वर राना
और तो क्या था बेचने के लिए
अपनी आँखों के ख़्वाब बेचे हैं
- जौन एलिया
एक हो जां तो बन सकते हैं ख़ुर्शीद-ए-मुबीं
वर्ना इन बिखरे हुए तारों से क्या काम बने
- अबुल मुजाहिद ज़ाहिद
वर्ना इन बिखरे हुए तारों से क्या काम बने
- अबुल मुजाहिद ज़ाहिद
मेरा मज़हब इश्क़ का मज़हब जिस में कोई तफ़रीक़ नहीं
मेरे हल्क़े में आते हैं 'तुलसी' भी और 'जामी' भी
- क़ैशर शमीम
मेरे हल्क़े में आते हैं 'तुलसी' भी और 'जामी' भी
- क़ैशर शमीम
मुझ से बिगड़ गए तो रक़ीबों की बन गई
ग़ैरों में बट रहा है मिरा एतिबार आज
- अहमद हुसैन माइल
ग़ैरों में बट रहा है मिरा एतिबार आज
- अहमद हुसैन माइल
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है
- अल्लामा इक़बाल
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है
- अल्लामा इक़बाल
एक आँसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है
तुम ने देखा नहीं आँखों का समुंदर होना
- मुनव्वर राना
तुम ने देखा नहीं आँखों का समुंदर होना
- मुनव्वर राना
इक रात वो गया था जहाँ बात रोक के
अब तक रुका हुआ हूँ वहीं रात रोक के
- फ़रहत एहसास
अब तक रुका हुआ हूँ वहीं रात रोक के
- फ़रहत एहसास
तन्हाई के लम्हात का एहसास हुआ है
जब तारों भरी रात का एहसास हुआ है
- नसीम शाहजहाँपुरी
जब तारों भरी रात का एहसास हुआ है
- नसीम शाहजहाँपुरी
जिस की आँखों में कटी थीं सदियाँ
उस ने सदियों की जुदाई दी है
- गुलज़ार
उस ने सदियों की जुदाई दी है
- गुलज़ार
बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना
आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना
- मिर्ज़ा ग़ालिब
आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना
- मिर्ज़ा ग़ालिब
उन का जो फ़र्ज़ है वो अहल-ए-सियासत जानें
मेरा पैग़ाम मोहब्बत है जहाँ तक पहुँचे
- जिगर मुरादाबादी
मेरा पैग़ाम मोहब्बत है जहाँ तक पहुँचे
- जिगर मुरादाबादी
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