उठो ये मंज़र-ए-शब-ताब देखने के लिए
कि नींद शर्त नहीं ख़्वाब देखने के लिए
- इरफ़ान सिद्दीक़ी
- इरफ़ान सिद्दीक़ी
इन चराग़ों में तेल ही कम था
क्यूं गिला फिर हमें हवा से रहे
- जावेद अख़्तर
क्यूं गिला फिर हमें हवा से रहे
- जावेद अख़्तर
फिर नज़र में फूल महके दिल में फिर शमाएं जलीं
फिर तसव्वुर ने लिया उस बज़्म में जाने का नाम
- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
फिर तसव्वुर ने लिया उस बज़्म में जाने का नाम
- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
अपने बच्चों को मैं बातों में लगा लेता हूँ
जब भी आवाज़ लगाता है खिलौने वाला
- राशिद राही
जब भी आवाज़ लगाता है खिलौने वाला
- राशिद राही
दर्द-ए-दिल कितना पसंद आया उसे
मैं ने जब की आह उस ने वाह की
- आसी ग़ाज़ीपुरी
मैं ने जब की आह उस ने वाह की
- आसी ग़ाज़ीपुरी
मैं हूं दिल है तन्हाई है
तुम भी होते अच्छा होता
- फ़िराक़ गोरखपुरी
तुम भी होते अच्छा होता
- फ़िराक़ गोरखपुरी
कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती है
ज़िंदगी एक नज़्म लगती है
- गुलज़ार
ज़िंदगी एक नज़्म लगती है
- गुलज़ार
मेरी आंखों में हैं आंसू तेरे दामन में बहार
गुल बना सकता है तू शबनम बना सकता हूं मैं
- नुशूर वाहिदी
गुल बना सकता है तू शबनम बना सकता हूं मैं
- नुशूर वाहिदी
शहर के अंधेरे को इक चराग़ काफ़ी है
सौ चराग़ जलते हैं इक चराग़ जलने से
- एहतिशाम अख़्तर
सौ चराग़ जलते हैं इक चराग़ जलने से
- एहतिशाम अख़्तर
झुक कर सलाम करने में क्या हर्ज है मगर
सर इतना मत झुकाओ कि दस्तार गिर पड़े
- इक़बाल अज़ीम
सर इतना मत झुकाओ कि दस्तार गिर पड़े
- इक़बाल अज़ीम
मायूसी-ए-मआल-ए-मोहब्बत न पूछिए
अपनों से पेश आए हैं बेगानगी से हम
- साहिर लुधियानवी
अपनों से पेश आए हैं बेगानगी से हम
- साहिर लुधियानवी
मिरे गुनाह ज़ियादा हैं या तिरी रहमत
करीम तू ही बता दे हिसाब कर के मुझे
- मुज़्तर ख़ैराबादी
करीम तू ही बता दे हिसाब कर के मुझे
- मुज़्तर ख़ैराबादी
ये धूप तो हर रुख़ से परेशां करेगी
क्यूं ढूंढ़ रहे हो किसी दीवार का साया
- अतहर नफ़ीस
क्यूं ढूंढ़ रहे हो किसी दीवार का साया
- अतहर नफ़ीस
पत्थर के जिगर वालो ग़म में वो रवानी है
ख़ुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है
- बशीर बद्र
ख़ुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है
- बशीर बद्र
हम लबों से कह न पाए उन से हाल-ए-दिल कभी
और वो समझे नहीं ये ख़ामोशी क्या चीज़ है
- निदा फ़ाज़ली
और वो समझे नहीं ये ख़ामोशी क्या चीज़ है
- निदा फ़ाज़ली
सुकून दे न सकीं राहतें ज़माने की
जो नींद आई तिरे ग़म की छाँव में आई
- पयाम फ़तेहपुरी
जो नींद आई तिरे ग़म की छाँव में आई
- पयाम फ़तेहपुरी
मैं डर रहा हूं तुम्हारी नशीली आंखों से
कि लूट लें न किसी रोज़ कुछ पिला के मुझे
- जलील मानिकपूरी
कि लूट लें न किसी रोज़ कुछ पिला के मुझे
- जलील मानिकपूरी
मुझ को औरों से कुछ नहीं है काम
तुझ से हर दम उमीद-वारी है
- फ़ाएज़ देहलवी
तुझ से हर दम उमीद-वारी है
- फ़ाएज़ देहलवी
क़ासिद के आते आते ख़त इक और लिख रखूं
मैं जानता हूं जो वो लिखेंगे जवाब में
- मिर्ज़ा ग़ालिब
मैं जानता हूं जो वो लिखेंगे जवाब में
- मिर्ज़ा ग़ालिब
अब भी बरसात की रातों में बदन टूटता है
जाग उठती हैं अजब ख़्वाहिशें अंगड़ाई की
- परवीन शाकिर
जाग उठती हैं अजब ख़्वाहिशें अंगड़ाई की
- परवीन शाकिर
आ कि तुझ बिन इस तरह ऐ दोस्त घबराता हूं मैं
जैसे हर शय में किसी शय की कमी पाता हूं मैं
- जिगर मुरादाबादी
जैसे हर शय में किसी शय की कमी पाता हूं मैं
- जिगर मुरादाबादी
जो दिल को है ख़बर कहीं मिलती नहीं ख़बर
हर सुब्ह इक अज़ाब है अख़बार देखना
- उबैदुल्लाह अलीम
हर सुब्ह इक अज़ाब है अख़बार देखना
- उबैदुल्लाह अलीम
दरिया के तलातुम से तो बच सकती है कश्ती
कश्ती में तलातुम हो तो साहिल न मिलेगा
- मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
कश्ती में तलातुम हो तो साहिल न मिलेगा
- मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
ये दश्त वो है जहाँ रास्ता नहीं मिलता
अभी से लौट चलो घर अभी उजाला है
- अख़्तर सईद ख़ान
अभी से लौट चलो घर अभी उजाला है
- अख़्तर सईद ख़ान
या रब मिरी दुआओं में इतना असर रहे
फूलों भरा सदा मिरी बहना का घर रहे
- अज्ञात
बहन की इल्तिजा मां की मोहब्बत साथ चलती है
वफ़ा-ए-दोस्तां बहर-ए-मशक़्कत साथ चलती है
- सय्यद ज़मीर जाफ़री
फूलों भरा सदा मिरी बहना का घर रहे
- अज्ञात
बहन की इल्तिजा मां की मोहब्बत साथ चलती है
वफ़ा-ए-दोस्तां बहर-ए-मशक़्कत साथ चलती है
- सय्यद ज़मीर जाफ़री
जब भी कश्ती मिरी सैलाब में आ जाती है
मां दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है
- मुनव्वर राना
घर लौट के रोएंगे मां बाप अकेले में
मिट्टी के खिलौने भी सस्ते न थे मेले में
- क़ैसर-उल जाफ़री
मां दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है
- मुनव्वर राना
घर लौट के रोएंगे मां बाप अकेले में
मिट्टी के खिलौने भी सस्ते न थे मेले में
- क़ैसर-उल जाफ़री
इन का उठना नहीं है हश्र से कम
घर की दीवार बाप का साया
- अज्ञात
उन के होने से बख़्त होते हैं
बाप घर के दरख़्त होते हैं
- अज्ञात
घर की दीवार बाप का साया
- अज्ञात
उन के होने से बख़्त होते हैं
बाप घर के दरख़्त होते हैं
- अज्ञात
उसे गुमां है कि मेरी उड़ान कुछ कम है
मुझे यक़ीं है कि ये आसमान कुछ कम है
- नफ़स अम्बालवी
मुझे यक़ीं है कि ये आसमान कुछ कम है
- नफ़स अम्बालवी
गो आबले हैं पांव में फिर भी ऐ रहरवो
मंज़िल की जुस्तुजू है तो जारी रहे सफ़र
- नूर क़ुरैशी
मंज़िल की जुस्तुजू है तो जारी रहे सफ़र
- नूर क़ुरैशी
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