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Top 30 Shayari - 1

Top 30 Shayari -


बेचैन इस क़दर था कि सोया न रात भर
पलकों से लिख रहा था तिरा नाम चांद पर
- अज्ञात

अभी तो जाग रहे हैं चराग़ राहों के
अभी है दूर सहर थोड़ी दूर साथ चलो
- अहमद फ़राज़

अब चराग़ों में ज़िंदगी कम है
दिल जलाओ कि रौशनी कम है
- अब्दुल मजीद ख़ां मजीद

मिरे वजूद को परछाइयों ने तोड़ दिया
मैं इक हिसार था तन्हाइयों ने तोड़ दिया
- फ़ाज़िल जमीली


हम को आपस में मोहब्बत नहीं करने देते
इक यही ऐब है इस शहर के दानाओं में
- क़तील शिफ़ाई

ख़ुश-नसीबी में है यही इक ऐब
बद-नसीबों के घर नहीं आती
- रसा जालंधरी

सारी दुनिया के ग़म हमारे हैं
और सितम ये कि हम तुम्हारे हैं
- जौन एलिया

अब घर भी नहीं घर की तमन्ना भी नहीं है
मुद्दत हुई सोचा था कि घर जाएंगे इक दिन
- साक़ी फ़ारुक़ी


वैसे तो इक आंसू ही बहा कर मुझे ले जाए
ऐसे कोई तूफ़ान हिला भी नहीं सकता
- वसीम बरेलवी

देखा न कोहकन कोई फ़रहाद के बग़ैर
आता नहीं है फ़न कोई उस्ताद के बग़ैर
- अज्ञात

आंखें खुलीं तो जाग उठीं हसरतें तमाम
उस को भी खो दिया जिसे पाया था ख़्वाब में
- सिराज लखनवी

अब जुदाई के सफ़र को मिरे आसान करो
तुम मुझे ख़्वाब में आ कर न परेशान करो
- मुनव्वर राना


कोई समझेगा क्या राज़-ए-गुलशन
जब तक उलझे न कांटों से दामन
- फ़ना निज़ामी कानपुरी

मैं समझता हूं कि है जन्नत ओ दोज़ख़ क्या चीज़
एक है वस्ल तिरा एक है फ़ुर्क़त तेरी
- जलील मानिकपूरी

तुम तकल्लुफ़ को भी इख़्लास समझते हो 'फ़राज़'
दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला
- अहमद फ़राज़

ये पानी ख़ामुशी से बह रहा है
इसे देखें कि इस में डूब जाएं
- अहमद मुश्ताक़


इतना भी ना-उमीद दिल-ए-कम-नज़र न हो
मुमकिन नहीं कि शाम-ए-अलम की सहर न हो
- नरेश कुमार शाद

खो दिया तुम को तो हम पूछते फिरते हैं यही
जिस की तक़दीर बिगड़ जाए वो करता क्या है
- फ़िराक़ गोरखपुरी

कोई दवा न दे सके मशवरा-ए-दुआ दिया
चारागरों ने और भी दर्द दिल का बढ़ा दिया
- हफ़ीज़ जालंधरी

बेचैन इस क़दर था कि सोया न रात भर
पलकों से लिख रहा था तिरा नाम चांद पर
- अज्ञात


ज़रा विसाल के बाद आइना तो देख ऐ दोस्त
तिरे जमाल की दोशीज़गी निखर आई
- फ़िराक़ गोरखपुरी

जितनी बटनी थी बट चुकी ये ज़मीं
अब तो बस आसमान बाक़ी है
- राजेश रेड्डी

अब मुझे मानें न मानें ऐ 'हफ़ीज़'
मानते हैं सब मिरे उस्ताद को
- हफ़ीज़ जालंधरी

रोज़ वो ख़्वाब में आते हैं गले मिलने को
मैं जो सोता हूं तो जाग उठती है क़िस्मत मेरी
- जलील मानिकपूरी


ज़िद हर इक बात पर नहीं अच्छी
दोस्त की दोस्त मान लेते हैं
- दाग़ देहलवी

इक परिंदा अभी उड़ान में है
तीर हर शख़्स की कमान में है
- अमीर क़ज़लबाश

ये सोचते ही रहे और बहार ख़त्म हुई
कहां चमन में नशेमन बने कहां न बने
- असर लखनवी

नहीं है मेरे मुक़द्दर में रौशनी न सही
ये खिड़की खोलो ज़रा सुब्ह की हवा ही लगे
- बशीर बद्र


ऐ आसमान तेरे ख़ुदा का नहीं है ख़ौफ़
डरते हैं ऐ ज़मीन तिरे आदमी से हम
- अज्ञात

औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया
जब जी चाहा मसला कुचला जब जी चाहा धुत्कार दिया
- साहिर लुधियानवी

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